जबलपुर । संस्कारधानी जबलपुर जो अब स्मार्ट सिटी के रूप में जाना जाता है, गौरवांवित होने वाली बात कहे या लज्जित होने वाली बात, आशय यह है कि बड़े गौरव की बात है के हम स्मार्ट सिटी के बाशिंदे है, तो वही लज्जापूर्ण बात यह है के स्मार्ट सिटी का रूप कुरूपता की गहन वेदना से कराह रहा है?
सर्वविदित है के नगर सत्ता भाजपा की है जिसके सिरमौर पूर्व कर्मठ कांग्रेसी महापौर जगत बहादुर सिंह है जो वर्तमान में भी भाजपाई महापौर है, विडंबना ही कहेंगे के माननीय की शहर विकास की रणनीति वातानुकूलित कक्ष में बड़े बड़े सब्जबाग का पुलिंदा तो तैयार करती है, जिसके लिए लाखों करोड़ों के बजट से संस्कारधानी के विकास की दास्तां लिखी जा रही है पर वास्तविकता की धरा पर जो विकास दृष्टिगत हो रहा है वो विकास के ढोल की पोल खोलता नजर आ रहा है?
अतिक्रमणों का मकड़जाल, जगह जगह गंदगी के ढेर, उबड़ खाबड़ सड़के, वार्डो में सफाई व्यवस्था का अभाव, इत्यादि नगर सत्ता की करनी ओर कथनी को दर्शा रहा है, महापौर अन्नू सिंह के कागजी विकास को देखते हुए अब शहर का जनमानस ये चर्चा कर रहा है के महापौर जी मस्त है, पार्षद गण मस्त है, अगर कोई त्रस्त है तो शहर की जनता त्रस्त है जो जबलपुर में करोड़ो रूपये की राशि से हो रहे विकास को सिर्फ शासकीय कागजो तक सीमित देख रही है?
विडंबना कहे या दुर्भाग्य के वर्तमान नगर सत्ता के प्रथम नागरिक महापौर के साथ ही जो वार्ड पार्षद है सभी के सभी निज विकास की परिपाटी का अनुसरण कर रहे है वार्ड की समस्याओं से इन्हें कोई सरोकार नही? ऐसा हो भी क्यो न संभवतः ये वार्ड प्रतिनधि भलीभांति जानते है के भाजपाई लहर में इनकी नैया पार लगी है और पार्षद बनने का सौभाग्य मिल पाया है और तो ओर पार्षद चुनाव में जो राशि व्यय की है दस गुना ब्याज के साथ हासिल भी तो करनी है?
मुद्दे की बात पर आते है जिस तरह शहर विकास की बड़ी बड़ी योजनाओं को पत्रकारवार्ता करके जगजाहिर किया जा रहा है, उन्हें अमलीजामा पहनाने में किसी भी माननीय की कोई विशेष रुचि नही है? निगम के गलियारों की कानाफूसी ओर सूत्रों की माने तो सफेदपोश निज नफा नुकसान के गुणाभाग के साथ कमीशन की मोटी मलाई बड़े स्वाद के साथ खाने का ताना बाना बुनने में व्यस्त है?
तो वही विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अमरीश मिश्रा नगर सत्ता पर भ्रस्टाचार के आरोप तो लगा रहे है पर जमिनी स्तर पर आवाज बुलंद करने में विवश ही नजर आ रहे है, नेता प्रतिपक्ष की ऐसी कार्यप्रणाली भी शहरवासियों के लिए चटकारे के साथ चर्चा का विषय बनी हुई है,कहा तो यहां तक जा रहा है सब एक थैली के चट्टे बट्टे है?
महापौर भी मस्त, पार्षद भी मस्त, कागजी विकास से जनता है त्रस्त ?
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