विडंबना ही कहेंगे कि कुरूप स्मार्ट सिटी की बदहाली का द्वंश झेल रहे स्मार्ट सिटी वासी चहुओर व्याप्त समस्याओं से पीड़ित है और जिम्मेदार आलीशान कमरों में वातानुकूलित माहौल में बैठक कर शहर को व्यवस्थित सौन्दर्यवान बनाने नीति नियम का खाका तैयार कर रहे है, न जाने कितने नीति नियम बने और दो चार दिन पालन करवाने के बाद गुमनामी की धुंध में खो गए, मुद्दे की बात पर आते है, वर्तमान में कुरूप स्मार्ट सिटी का जनमानस एक ओर विकराल समस्या से नित दिन हलाकान है वो नासूर है ई-रिक्शा, शहर के प्रमुख मार्गों से लेकर गली मोहल्लों तक धड़ल्ले से भाग रहे ये बैटरी युक्त वाहन सवारी ढोने के साथ ही मालवाहक की भूमिका का बेखौफ निर्वहन कर रहे है और वाहन चालक सड़कों को अपनी बपौती समझकर जहां मन हुआ वहीं गाड़ी खड़ी कर देते है, दुर्भाग्य कहे या जिम्मेदार पुलिस विभाग की लचर कार्यप्रणाली के इन यमदूत के वाहकों की मनमानी पर लगाम कसने की बजाय इन्हें अनदेखा कर रहे है, जिसके परिणाम स्वरूप प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं में कोई न कोई इनका शिकार बन रहा है, हास्यदपड ही कहेंगे कि एक तरफ तो आला अधिकारी यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने बैठकों पर बैठक कर रहे है, लेकिन जमींनी स्तर पर अधीनस्थ निचले क्रम से तीन स्टार तक के अधिकारी सिर्फ खानापूर्ति की कार्यवाही कर रहे है, हां वो बात अलग है कि चलानी कार्यवाही के आदेश आने के बाद पुलिस कर्मी चाहे वो थाना स्तर के हो या यातायात विभाग के सभी के सभी मिल बांटकर पूर्ण सक्रियता से आला अधिकारियों के आदेश का पूर्ण निष्ठा से पालन करने जुट जायँगे, ऐसा हो भी क्यों न बढ़ती महंगाई में धन आमद के अधिक से अधिक स्त्रोत पर ही ध्यान जो केंद्रित होता है? खैर गरीब के दरिद्र नारायण होते है इन शब्दों का आशय सिर्फ इतना है कि कुरूप स्मार्ट सिटी का जनमानस पहले भी इन समस्या रूपी यातनाओं के बीच जद्दोजहद कर संघर्ष कर ही रहा था और आगे भी करता रहेगा, क्योंकि जनप्रतिनिधियों व अन्य जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों की दृढ़ इक्षाशक्ति के अभाव के चलते शहर का व्यवस्थित सौंदर्य स्वरूप अपनी अस्मिता के चीरहरण की दास्तां खुद बयां कर रहा है।
