जबलपुर (नवनीत दुबे): आदिशक्ति के पावन नवरात्र पर्व सम्पन्न हो चुके है हर समिति द्वारा महामाई की प्रतिमा का विसर्जन भी किया जा चुका है,आस्था,उत्साह,समर्पण,श्रद्धा भाव, के बीच सम्पन्न हुए इस पावन पर्व में कुछ समितियों द्वारा चौदस को मातारानी की प्रतिमा का विसर्जन शोभयात्रा का आयोजन किया गया वह बिदाई की बेला में संभवतः आदिशक्ति की भक्ति पर सवालिया निशान लगा गया ? कुछ समितियों द्वारा जबलपुर के साथ ही भोपाल, रायपुर, झारखंड के नामी गिरामी डी जे साउंड वालो को बुलाया गया और प्रतिस्पर्धा का आयोजन किया गया कि सबसे बेहतर कौन ?
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बस फिर क्या हुआ भी कुछ ऐसा ही माता महाकाली की प्रतिमा स्थापित करने वाली संस्कारधानी की प्रसिद्ध समितियों ने अपना वर्चस्व सर्वोपरि दिखाने विसर्जन बेला में जिस तरह से कानफाड़ू गीत बजवाय उसने समितियों की आदिशक्ति के प्रति भक्ति को कटघरे में ला खड़ा कर दिया ?शहर के जिस मार्ग से विसर्जन शोभायात्रा निकल रही थी वहां के मकानों ,प्रतिस्थानो की दीवार तक कंपन कर रही थी ,साथ ही भक्ति के नाम पर जिस तरह डी जे संचालक चकाचोंध रोशनी ओर अनियंत्रित साउंड में गीत बजा रहे थे उससे अस्पतालों में भर्ती मरीजों की सांस गले मे अटक रही थी,
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दुर्भाग्य कहे या विडंबना के कानून व्यवस्था के प्रहरी खाकीधारी शांति व्यवस्था बनाये रखने तैनात थे और देवी भक्ति के नाम पर कान फाड़ू साउंड ओर फूहड़ता को देख रहे थे किंतु भक्ति के नाम पर चल रहे दिखावे को चुपचाप देख रहे थे,ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा के राजनीतिक बेड़ियों की जकड़न ख़ाकीधारियो को बाध्य कर के रखी होंगी ,हालाकि महाकाली प्रतिमा विसर्जन में जिन जिन समितियों ने कानफाड़ू शोर से बुजुर्गों,नवजातों,हार्ट पेशेंट,अस्पतालों में भर्ती अन्य पीड़ित,के साथ ही शोभयात्रा मार्ग में पड़ने वाले घरों,प्रतिष्ठानों, को हलकान किया वह अक्षम्य है ?
मुद्दे की बात ये है के किसी भी धर्म का पर्व में डीजे का कानफाड़ू शोर धर्म की पवित्रता को सर्वोपरि दिखाता है ,जबकि वास्तविकता यही है के धर्म के नाम पर पावन पर्वो पर तेज आवाज में साउंड का शोर उस पावन पर्व की गरिमा और प्रतिष्ठा को धूमिल करता है ,सर्वविदित है के किसी भी धर्म के त्योहार हो नियम कानून को ताक पर रखकर सियासतदारों की कृपा प्राप्त कर बेखोफ होकर तेज ध्वनि से डी जे शोर मचाकर अपना दमखम प्रदर्शित किया जाता है,जिससे सिर्फ आयोजको को आनंद की अनुभूति होती है ,इसके अलावा हर जनमानस हलकान नजर आता है,संस्कारधानी में महाकाली विसर्जन के दौरान जिस तरह अनियंत्रित गति से डी जे का शोर मचाया गया वह चिंतनीय है और शाशन -प्रशाशन के लिए नियम नीति नियत करने का विषय है जो आयोजको के लिए एक सीख हो, फिर चाहे वह किसी धर्म से हो ?
