वो मंत्री जी है साहब, कोई आमजन नही जो पुलिसिया रौब चल पाये?
बीते दिनों मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह द्वारा के जनसभा को संबोधित करते हुए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया गया वह सर्वविदित है, मंत्री जी अतिउत्साह में ये भूल गए के माँ भारती के सच्चे सपूत (भारतीय सेना चाहे महिला हो या पुरुष) ये देश के लिए प्राण न्योछावर करने अग्रणी रहते है।
अब ऐसे में भाजपा के मंत्री विजय शाह द्वारा सियासती शब्दबाण के प्रयोग में भी हिन्दू मुस्लिम की राजनीति का प्रयोग किया गया। दुर्भाग्य ही कहेंगे के इतने जिम्मेदार पद पर आसीन प्रदेश की मोहन यादव सरकार में जनजातीय कार्य मंत्री द्वारा जो अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया गया वह अमर्यादित के साथ ही महिला अस्मिता ओर देश की सेना का अपमान ही माना जायेगा।
मुद्दे की बात पर आते है सत्ता के मद में चूर भाजपाई सियासत दारो द्वारा ऐसी भाषा शैली का प्रयोग कोई नई बात नही है इससे पूर्व भी विजय शाह द्वारा अमर्यादित भाषा का वाचन किया जा चुका है, किंतु इस बार हिंदुस्तान के शौर्य का प्रतीक भारतीय सेना विशेषतः महिला सैन्य अधिकारी को सम्प्रदाय से जोड़कर अपमानित किया जाना इनकी सोच और शिक्षा का प्रदर्शन करता है?
देश की सेना के हुए अपमान पर माननीय उच्च न्यायलय ने तत्काल संज्ञान लेते हुए मंत्री जी पर एफआईआर करने पुलिस विभाग को आदेशित किया और राजनीतिक बेड़ियों में जकड़ा पुलिस तंत्र कंपन भरे हाथों से मामला दर्ज भी करने विवश नजर आया, ओर मानपुर थाने में मंत्री जी की एफआईआर दर्ज की गई यह तक तो ठीक था, लेकिन विडंबना ही कहेंगे के सियासती आकाओं की चाटुकारिता के आगे नतमस्तक खाकी धारियों को माननीय न्यायालय के आदेश का पालन करने में पसीने छूट गया, ऐसा हो भी क्यो न सियासती आकाओं के रहमोकरम पर ही मनपसंद स्थानों में मलाईदार थाने में हुकूमत करने का अवसर मिलता है?
साथ ही आला अधिकारी भी अपनी मनमुराद की अर्जी सियासती आकाओं के दरबार मे ही लगाते है, तो बस हुआ भी कुछ ऐसा ही पुलिस ने मंत्री जी के खिलाफ मामला तो दर्ज किया लेकिन खादी के प्रति खाकी की भक्ति को अग्रणी रखते हुए सहज धाराओं के तहत प्राथिमिकी दर्ज हुई, जिसके चलते माननीय उच्च न्यायलय के न्यायधीशों द्वारा पुलिस विभाग के प्रति नाराजगी जाहिर की गई, लेकिन ‘ढाक के तीन पात, पुलिस विभाग भी अच्छे से जानता है के सत्ता में बैठे हुक्मरानों के खिलाफ कानून का डंडा चलाया तो नुकसान इन्ही को सहना पड़ेगा।
रही माननीय न्यायधीशों की तो प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता कानूनी पेंच खेल कर मामला सुलझा देंगे, आखिर मंत्री जी है साहब, कोई आमजन थोड़े जो अपनी मनमर्जी से धाराओं पे धारा बढ़ा दी जाय और बहुत मजबूत प्रकरण तैयार किया जाय?
कोई आम आदमी होता तो राष्ट्रदोह तक का मामला बना दिया जाता और ऐसे ऐसे कानूनी पेंच फ़साय जाते के उसका सारा जीवन बर्बादी की दास्तां बनकर रह जाता? जैसा कि होता भी आ रहा है, एक मामूली से प्रकरण को भी इतनी संजीदगी से दर्ज किया जाता है के आरोपी बनाय गए व्यक्ति को अपनी बेगुनाही साबित करने में पसीने छूट जाते है?
ऐसे परिदृश्य में ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि पुलिसिया कानूनी डंडे का रौब सिर्फ आमजन पर हो दिखाया जा सकता है और रही रसूखदारों व सियासती आकाओं की तो डंडे की दिशा और खाकी धारियों की दशा दोनों ही दंडवत की भांति ही दृष्टिगत होते है?
अंततः अब देखना ये है की माँ भारती की देशभक्त बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी के लिए इस्तेमाल हुए मध्यप्रदेश भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह पर मुख्यमंत्री मोहन यादव व भाजपाई आलाकामान क्या निर्णय लेते है भारतीय सेना के सम्मान को सर्वोपरि रखा जाता है या फिर वोटबैंक की सियासत के चलते सियासती रसूखदारों की प्रधानता का बोलबाला कायम रहता है?
सियासती आकाओं की चाटुकारिता और माननीय न्यायलय का आदेश?
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