कलम में चाटुकारिता की स्याही का परिणाम है, पत्रकारों की अस्मिता को तार तार करना ?

News Desk
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जबलपुर पत्रकारिता के क्षेत्र में बीते कुछ वर्षों से जो परिदृश्य दृष्टिगत हो रहे है वह चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की अस्मिता पर लात रखने वाले है, शब्द कटु है पर सोलह आने सत्य है चाहे प्रशासनिक विभाग के अधिकारी हो या राजनीतिक दल के नेता, सभी अपने पद गुमान में मदमस्त है? और अखबारों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित होने वाली खबरों का निर्धारण अपनी मंशानुसार नियत करते है, मजाल है किसी पत्रकार की कलम माननीय या महोदयों के काले पीले कारनामे को उजागर करने का साहस जुटा सके ?हालांकि ऐसी परिस्थिति निर्मित होने के भी मुख्य सूत्रधार व कारक मुठी भर तथकथित पत्रकार ही है जो शासकीय विभागों जिसमे मुख्यतः पुलिस विभाग की चाटुकारिता ओर जीहुजूरी इतनी कर्तव्यनिष्ठा से कर रहे है मानो इनका दाना पानी इन्ही महोदयों की कृपादृष्टि से चल रहा हो?
विडंबना ही कहेंगे के वर्तमान में शराब की एक बोतल में पत्रकारों की औकात नापी जाने लगी है? रही राजनीतिक दल के नेताओ की तो ये भी भलीभांति जानते है पांच सौ का लिफाफा देकर पत्रकारों से मनमुताबिक खबर का प्रकाशन करवाया जा सकता है? मुद्दे की बात पर आते है बीते दिनों कुछ पत्रकारो के साथ संस्कारधानी के पुलिस अधिकारियों ने बदतमीजी की ओर उन्हें किसी खबर के कवरेज से रोका गया सीधी सी बात है जब वरिष्ठ अधिकारी कलमवीरो से ऐसा बर्ताव करेंगे तो निचले स्तर के पुलिस कर्मी तो पत्रकारों की शाख को हाशिये पर ही रखेंगे, ऐसा ही एक मामला ओर सामने आया जिसमे सत्ताधारी भाजपा के एक मंत्री महोदय द्वारा भरे मंच से मोदी जी की शान में ऐसे कसीदे पढ़े गए जिससे आमजन की भावनाए आहत हुई?
बस फिर क्या आनन फानन में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियो ने खबर के प्रकाशन पर पुलिसिया कानूनी रौब झाड़ दिया, हालांकि पत्रकार बिरादरी के एक समूह ने इस कृत्य का विरोध करते हुए पत्रकारों की अस्मिता ओर अधिकार का आईना पुलिस विभाग को दिखाने का प्रयास किया तब आपसी तालमेल के बाद मामला शांत हुआ, ऐसे कई मामले दिन ब दिन सामने आ रहे है जहाँ पुलिस विभाग के आरक्षक से वरिष्ठ अधिकारी तक पत्रकारों पर कानूनी रौब झाड़ते हुए उन्हें नीचा दिखाने का भरसक प्रयास कर रहे है, इस समूचे तारतम्य में एक ही बात प्रमुखतः विचारणीय ओर चिंतनीय है के आखिर क्यो कलमवीरो की अस्मिता को तार तार किया जाता है?
बहुत हद तक इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता कि कलम में चाटुकारिता की स्याही पत्रकारों के अस्तित्व व सम्मानजनक कार्यशैली में बाधक बन रही है चंद तथाकथित पत्रकारों की वजह से प्रशासनिक विभाग व राजनीतिक दल पूरी पत्रकार बिरादरी के एक तराजू में तोलने की मंशा रखते है जिसके फलस्वरूप सच्चे ओर निष्ठावान पत्रकारों के सम्मान को ठेस पहुचाई जा रही है और पत्रकारिता के क्षेत्र में निष्पक्ष पत्रकारिता को धूमिल किया जा रहा है, अंततः पत्रकार जगत के लिए एक बात सोचनीय है के आपसी खींचतान ओर वर्चस्व की ही परिणीति है के माननीयों ओर महोदयों की दृष्टि में आपकी अस्मिता का कितना सम्मान रह गया है? जब तक सच्चे, ईमानदार कलमवीर एकजुट होकर इस तानाशाही के विरुद्ध हुंकार नही भरेंगे तब तक मुट्ठीभर तथाकथित पत्रकारों की चाटुकार नीति का खामियाजा इसी तरह सरेआम अपमानित होकर उठाना पड़ेगा?

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